Respected Pt. Manoj Krishna Shastri ji was comment about essential moral in devotional field express the value of devotion in the world to a person who commented on my post ..
a person has asked me how nice if some people start nirgun upasana then me replying him nirgun-sagun both philosophy are for reaching to the God but Sagun-Sakar way of philosophy is very fair-God's mercyful -simple and in everyone's aproaches
-in this way we need not to reach to the God .. here (in sagun-sakar)god will reaches to us ..
so it is supreme
i too give example that lord krishna expressed gyan yog-karama yog-sankhy yog in bhagavad geeta but at last he told about supreme bhakti yog for arjun .. at here krishna suggested for keeping all for a devotee no need to any worry or tension .. so arjun say yes lord i understood and now i am surrendering my self in your kind devotion
i have too printed this post on Jai Hindutwa-Jai Bharat event's status ..
now an other person commented that i am a raskal preaching insult for bhakti yog .. and asked when will i am leaving bhakti way of lrd krishna ..
friends in above or on my profile , there is any insult for bhakti yog ? i am always in favour for bhagavad bhakti so how can possible and my motto is for social networking is only spreading love of bhakt-bhagavant in this universe ..
i think he was some confused .. may be any translation-understanding problem ,, so he was showing rude behave ..
but i agree he is not a true devotee because he can judge easly that i am for only krishna's love .. all foto-note-blogs-communities -causes are about only for devotion ..
my every post-comment are for in lotus feet of lord rama-lord krishna !!
other point is also for him why he write maharaj in his name even we never say respect for our selves .. other can respect ..but he is respecting him self by write maharaj in his name .. so sure he is not a bhakta and suggesting to me for leaving devotion path ..
all acharyas-devotees 's motto is for pulling people for devotion not for cicking them and insulting .. but he was advising me for leaving devotional way so proved he is any dramatist not a devotee ;;
JAI SHRI RADHEY SHYAM !!
then shastriji replied for him
इवेंट जय हिंदुत्व-जय भारत पर एक बज्र धूर्त के मायावी परामर्श श्री हरि भक्ति पथ छोड़कर उसकी भक्ति करने से कल्याण होगा कमेन्ट पर उसे मेरा संतुलित एवं सटीक प्रतिउत्तर -मित्रो आपका इसे like करना व सहमति कमेन्ट करना /लिखना मेरे को संवल प्रदान कर मुझे (मेरे)भक्ति मार्ग निष्ठां -प्रेम में बृद्धि करने में सहाय होगा
-जय सियाराम !!
@चिंतामणि गोस्वामी महाराज जी ... आप भावार्थ समझे बिना अर्थ लगा कर अपने गर्वित वचन झोंक रहे हैं .. जोकि सर्वथा अनुचित एवं भक्तियोग से परे है ! यहाँ स्वीटी राधिका गौतम जी एक व्यक्ति के पूछने पर कि निर्गुण ब्रह्म कि उपासना भी सगुन साकार के सदृश फल दाई है तो निर्गुण ब्रह्म की उपासना क्यों न करें ? ,इसपर स्वीटी राधिका उसे संतुलित रूप से समझाते हुए भक्तियोग की श्रेष्ठता बता रहीं हैं ... यहाँ भक्ति योग को simple(सरल ) एवं easy(शीघ्र ही ग्राह्य ) कह भक्ति योग की अन्य के सापेक्ष सुगमता सिद्ध की है , आप व्यर्थ में ही अपने हठयोग का परिचय दे रहे हैं ! आपको पता है कि हम ब्रजवासी जन जन्म से ही भगवान श्री राधाकृष्ण कि मधुर कृपा से भक्ति योग में डूबे हुए आते हैं -जुड़ना तो सामान्य सी बात है -हम लोग डूबे होते हैं दुर्लभ श्रीजी कृपा में .. और रही आपके भक्ति योग को छोड़ने के परामर्श कि तो आप स्वयं अपने कहे शब्द raskal की भांति ही राक्षस -चांडाल हैं ,जो भक्ति पथ पर आरूढ़ किसी को भक्ति छोड़ने को कह रहे हैं ! इतना स्पष्ट लिखा एवं सम्पूर्ण फेसबुक प्रोफाइल पर -इवेंट की संपूर्ण विवरण में पग -पग पर भक्ति से ओत -प्रोत होने पर भी आप दंभ में चूर अनाप -शनाप बोले जारहे हैं यध्यपि हमारी ओर से कल आपके कमेन्ट को like किया गया था पर आपका मिथ्याभिमान भड गया अतः आपको कुछ कटु भाषा किन्तु सत्य आपके कल्याण हेतु लिखी .. कृपया पहले भली भांति भक्तियोग का आश्रय लें फिर बोलें ..केवल लिखने मात्र से कोई महाराज नहीं होता आप सेवक -दास तो बने नहीं चले सीधे महाराज बनने एक बात बताएं राज-तंत्र आज लोक मत में मर गया वह कहाँ से पुनः आकर आपको महाराज बना गया ? कोन से राज्य के महाराज हो ? किसने बनाया ? आपको लज्जा नहीं आती अपने नाम में महाराज लिखने में ? क्या दुकान चला रहे हो ठगी की जो महाराज हो कर ऊँचा दिखाना चाहते हो ? याद रखें भक्ति-योग में महाराज नहीं दास्य-सेवक-प्रेमी होते हैं ! सारी की सारी प्रोफाइल व्यापार गली बनाकर भक्ति योग से हमें दूर करने चला है मायावी ? जा अगर भक्ति का कुछ भी अंशांश है तो भगवान के सम्मुख प्रतिज्ञा कर धूर्तता छोड़ने की-लोगों को मुर्ख बनाने छोड़ने की -अहंकार में मतवाले होने छोड़ने की और अपने नाम से महाराज हठा दास या दासानुदास लिख जो भक्तियोग का प्रथम एवं अनिवार्य सोपान है ..
धन्यवाद !
कृपया ध्यान दें कोई अन्य आपको महाराज-स्वामी-गुरु बोले तो चलो मान लिया आपके प्रति उस व्यक्ति में श्रृद्धा भावना है !पर जब आप स्वयं ही अपने आपको स्वामी-महाराज-आचार्य या गुरु बोलेंगे/प्रोफाइल पर नाम में लिखेंगे तो आप केवल धर्मं के नाम पर कुत्सित व्यापार करने वाले हैं ! पुस्तकों से टीप-टीप कर अपनी प्रोफाइल को आत्मा-परमात्मा-भक्ति-प्रेम की बातें लिख सीधी-साधी जनता को चेला-चेली बना स्वार्थ सिद्ध करते है ! निश्चित ही आपको इसका फल मिलेगा आज नहीं तो निश्चय कल-जैसी करनी वैसा फल लोग आपको घसीट-घसीट कर आपकी इन्द्रिय स्वामी (गोस्वामी ) की पोल-आप जैसे लालची-स्वार्थी-ठग की पोल खोल आपको स्व- सृजित महाराज सिंघासन से फेंक पूछेंगे और तव सिवा दुर्गति के आपके पास कोई विकल्प नहीं होगा !
जय सनातन धर्मं -जय भक्त-भक्ति-भगवंत-गुरु !!
श्री चैतन्य महाप्रभु जी ने भी अपने को कभी महाराज नहीं कहा सदैव दास्य भाव प्रीती श्री राधेगोविन्द चरणों में समर्पित की आप को शर्म नहीं आती स्वयं को महाराज लिखने में !
कृपया अपने नाम में महाराज आदि के बजाय दास या दासानुदास लिखें -
जय गौर प्रेमानंदा !!
-जय श्री राधेश्याम !!
basically above suggestion is for a person who is writing degree maharaj(KING FOR ALL/MASTER OF ALL/coach for all) on his name that for devotion leave this crown of proud and add das-dasanudas-sevak with his name its essential and has suggested by shri chaitanya mahaprabhu and various acharyas and devotees .. A.C.Bhakti Vedant Swami Prabhu Pada has also told for feel like a servent not as a master in devotion !!
generally such people are cheater moving in devotional world as demon Ravan ... dress and sound is as a devotee but heart is for a greed -steeling So we needed identified such persons-cheaters and announce in devotees ..this is too a worship and love for lord krishna because we are caring for his beloved devotees and devotion .. jay shri krishna !!
श्री चैतन्य महाप्रभु जी ने भी अपने को कभी महाराज नहीं कहा सदैव दास्य भाव प्रीती श्री राधेगोविन्द चरणों में समर्पित की आप को शर्म नहीं आती स्वयं को महाराज लिखने में ! कृपया अपने नाम में महाराज आदि के बजाय दास या दासानुदास लिखें - जय गौर प्रेमानंदा !! -जय श्री राधेश्याम !!
जय पार्थ सारथी -जय गीता ज्ञान उद्घोषक-जय वासुदेव-जय श्री कृष्ण-जय केशव-जय माधव-जय श्री मन नारायण -जय विश्वनाथ-जय आशुतोष-जय महाकाल-जय शिव शम्भो -जय गजानना-जय चतुरानन-जय जग जननी -जय दीनानाथ प्रभो -जय भक्त वत्सल-जय सच्चिदानंद-जय दीनबंधू-जय सत्य प्रभो -जय धर्मं सनातन -जय रघुवर-जय-जय श्री हरि प्रेमा नन्द प्रभो !
जय-जय श्री राधेश्याम !
नमः पार्वती पत्ये हर-हर महादेव !!
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