Monday, May 30, 2011

यहाँ डाल डाल और पात पात श्री राधे राधे होय।



वृन्दावन धाम कौ वास भलौ, जहाँ पास बहै यमुना पटरानी।
जो जन न्हाय के ध्यान करै, बैकुण्ठ मिले तिनको रजधानी॥



ब्रज का हृदय श्रीवृन्दावन धाम श्री प्रिया-प्रियतम की नित्य नवरस केलि से आच्छादित है। यहाँ की पावन भूमि नित्य नव कुँज, पुष्प, लताओं से घिरी रहती है। यमुना जी के पावन किनारों पर कदम्ब, तमाल आदि के वृक्ष बल्लरियाँ श्री युगल सरकार की नित्य लीलाओं को प्रकट कराने के लिये आतुर रहते हैं और यही विचार करते रहते हैं कि कब प्यारे श्याम सुन्दर आयें और हमें भी अपनी लीलाओं का प्रतिभागी बनायें। यहाँ के वन-उपवन, कुँज-निकुँज, कुण्ड-सरोवर, यमुना के पावन तट आदि श्याम सुन्दर की लीलाओं के प्रत्यक्ष साक्षी हैं। श्रीवृन्दावन प्रभु के गोलोक धाम का ही प्रतिबिम्ब है। यह नित्य निरंतर शास्वत है। इस नित्य लीला धाम के प्रकट होने पर श्री प्रिया-प्रियतम आ विराजते हैं-अपने दिव्य रस से अभिसिंचित परिवेष में अपनी रासेश्वरी प्रियाजू एवं प्रिय सखियों सहित अपनी विभिन्न लीलायें सम्पन्न करते हैं। इन लीलाओं का परिपूर्ण वर्णन शब्दों में व्यक्त करना बहुत कठिन हैं, क्योंकि इन्हें तो अपने मन को एकाग्र कर प्रभु की इन चिन्मय लीलाओं में खोकर इस रस को नेत्रों से पान किया जाता है और कानों से सुना जाता है।

सभी गोकुलवासी कंस के आतंक से भयभीत थे। तब गोप उपनन्द जी ने सुझाव दिया कि यमुना के पार एक सुन्दर वृन्दावन है जहाँ अनेक वृक्ष, वन, पावन यमुना, गोवर्धन पर्वत आदि हैं। यह स्थान हमारे लिये तो सुरक्षित है ही, हमारी गायों के लिये भी विचरण करने हेतु यहाँ अनेक वन हैं। सभी गोकुलवासी इस पर सहमत हो गये और उन्होंने वृन्दावन को अपना निवास स्थल बनाया। गोवर्धन, बरसाना, नन्दगाँव आदि भी वृन्दावन की परिसीमा में आते थे।
धन वृन्दावन धाम है, धन वृन्दावन नाम। धन वृन्दावन रसिक जो सुमिरै स्यामा स्याम।
श्रीकृष्ण जी ने कहा है - वृन्दावन मेरा निज धाम है। इस वृन्दावन में जो समस्त पशु, पक्षी, मृग, कीट, मानव एवं देवता गण वास करते हैं वे मेरे ही अधिष्ठान में वास करते हैं और देहावसान के बाद सब मेरे धाम को प्राप्त होते हैं। वृन्दावन के वृक्ष साक्षात कल्पतरु हैं यहाँ की भूमि दर्पण के समान एवं मन्दिर, गौशाला स्थानों की भूमि तो चिन्तामणि स्वरूप, सर्व अभिलाषाओं की पूर्ति करने में समर्थ है।

वृन्दावन के वृक्ष को मरम न जाने कोय, यहाँ डाल डाल और पात पात श्री राधे राधे होय।

वृन्दावन की छवि प्रतिक्षण नवीन है। आज भी चारों ओर आराध्य की आराधना और इष्ट की उपासना के स्वर हर क्षण सुनाई देते हैं। कोई भी अनुभव कर सकता है कि वृन्दावन की सीमा में प्रवेश करते ही एक अदृश्य भाव, एक अदृश्य शक्ति हृदय स्थल के अन्दर प्रवेश करती है और वृन्दावन की परिधि छोड़ते ही यह दूर हो जाती है।

अष्टछाप कवि सूरदास जी ने वृन्दावन रज की महिमा के वशीभूत होकर गाया है-

हम ना भई वृन्दावन रेणु,
तिन चरनन डोलत नंद नन्दन नित प्रति चरावत धेनु।
हम ते धन्य परम ये द्रुम वन बाल बच्छ अरु धेनु।
सूर सकल खेलत हँस बोलत संग मध्य पीवत धेनु॥

Thursday, May 5, 2011

अक्षयतृतीया


भायँ कुभायँ अनख आलसहूँ ! नाम जपत मंगल दिसि दसहूँ !!
सुमिरि सो नाम राम गुन गाथा ! करउँ नाइ रघुनाथहि  माथा !! 
मोरि सुधारिहि सो सब भाँती !जासु कृपा नहिं कृपाँ अघाती !! 
राम सुस्वामि कुसेवकु मोसो ! निज दिसि देखि दयानिधि पोसो !!


जय सिया राम 
हरेकृष्ण हरेकृष्ण कृष्णकृष्ण हरेहरे-हरेराम हरेराम रामराम हरेहरे 
स्वीट राधिका राधे-राधे 
अक्षयतृतीया के पावन अवसर पर श्रीधामवृन्दावन में श्री बाँकेबिहारीजी महाराज के चरण दर्शन कर गौडीय संप्रदाय के सभी मंदिरों में श्री युगलसरकार भगवान श्री राधिका श्यामसुन्दर जी के सर्वांग चन्दन दर्शन कर लाभान्वित हों , कल्प कथानुसार भगवान परसुराम के प्राकट्य दिवस के रूप में अक्षयतृतीया को संकल्प बद्ध हों कि हे हरि ! मैं अपने निश्चर रूपी अवगुणों पर विजय प्राप्त कर रामकृपा रूपी सद्गुणों की छाँव में सत्यम-शिवम्-सुन्दरम जीवनधारा-जीवनआनंद प्राप्त करूँ !!
-राधे-राधे - 
 

Monday, May 2, 2011

bhakti-bhakt-bhagavant guru chatur naamu vapu ek--

 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
-shri radhey-
bhakt hamare mukut mani - main bhaktan ko daas ! 
 bhaktan hit ya jagat men - main nitya karun brajvaas !! 
 bhaktan pag sammukh sada - nayana mere aru bhal ! 
 bhakt prem rajju bandhu - main bhaktan pran gopal !! 
shri radhey-radhey gaay ke - bhaktan terun bulay !
mili keli braj men karun - aiso mero subhay !!
sweet radhika-radhey-radhey